Tuesday, February 5, 2013

लहरों की तरह बहते हुए बादलों को कभि देखना तुम| आज इन्ही बादलों के बीच बैठे बैठे तुम्हारी याद यकायक आई| पिछले कुछ दिनों से तुम मानो एक पुरानी याद बनके दिल के किसी कोने में सोए हुए थे| इन बादलों को देख कर ऐसा लगा मानो तुम मेरी तरफ धीरे धीरे बढ़ रहे थे| लेकिन बादलो की फ़ितरत कब बदली है? उनके बीच खड़े रहो, फिर भी वो हाथ ना आएँगे| हाँ| अब समझ आया तुम्हारा याद क्यूँ आई| क्या तुम भी ऐसी ही नही हो? पिछले कुछ दिनों से क्या तुम भी ऐसी नही हो गयी हो? अब तुम्हे इन्ही बादलों की तरह डोर से देखने की आदत हो गयी है| वो तो शुक्र है इन बादलों का, जिन्होने ये एहसास दिलाया की तुम्हारी यादें सो सकती हैं, मार नही सकती| कोहरे जैसे बादलों को चूमने की कोशिश की| नतीजा? एक बारिश की बूँद होठों पर आके रुक गयी| मीठी थी| उसे तुम्हारे नाम कर दिया|
आज उन बादलों की बाहों में बैठे बैठे तुम्हारी बाहों के दायरे याद आ रहें हैं| अब तुमसे दूर रहने की आदत सी हो गयी है| इन बादलों से कह दिया है की जब तुम इन्हे छूने की कोशिश करो, तो तुम्हारे होठों को भी एक बारिश की बूँद से चूम लें| वो बूँद बारिश की नही, इन आँखों की होगी। 

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