यूँ ही मोहब्बत करता रह
यूँ ही मोहब्बत बुनता रह
जो चोट खाए, तो स्याही बना उसे,
जो हँसी आये, तो शायरी बना उसे
जो घबराए तू, तो बीते दिन याद कर,
जो मायूस तू, तो उन चेहरों को याद कर
तू धड़कता है, तो दिन गुज़रते हैं,
तू न हो, तो हम न जीते हैं न मरते हैं,
तूने ही मोहब्बत सिखाया, किसी ने तुझे ये नहीं बताया
तू ही मोहब्बत है, तुझसे ही मोहब्बत है,
जब सुनसान सी रातो में तू घबराता है
तू खुद ही एक आवाज़ बन मुझे याद दिलाता है
यूँ ही मोहब्बत करता रह
यूँ ही मोहब्बत बुनता रह
यूँ ही मोहब्बत बुनता रह
जो चोट खाए, तो स्याही बना उसे,
जो हँसी आये, तो शायरी बना उसे
जो घबराए तू, तो बीते दिन याद कर,
जो मायूस तू, तो उन चेहरों को याद कर
तू धड़कता है, तो दिन गुज़रते हैं,
तू न हो, तो हम न जीते हैं न मरते हैं,
तूने ही मोहब्बत सिखाया, किसी ने तुझे ये नहीं बताया
तू ही मोहब्बत है, तुझसे ही मोहब्बत है,
जब सुनसान सी रातो में तू घबराता है
तू खुद ही एक आवाज़ बन मुझे याद दिलाता है
यूँ ही मोहब्बत करता रह
यूँ ही मोहब्बत बुनता रह
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